जमदग्नि ऋषि
परिचय
जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीक के यहाँ पुत्र रूप में हुआ था। जमदग्नि की पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। जमदग्नि ने अपनी तपस्या एवं साधना द्वारा उच्च स्थान प्राप्त किया था, जिससे सभी उनका आदर सत्कार करते थे। ऋषि जमदग्नि तपस्वी और तेजस्वी ऋषि थे। उनके और रेणुका के पाँच पुत्र थे- 'रुक्मवान', 'सुखेण', 'वसु', 'विश्ववानस' और 'परशुराम'।
भगवान परशुराम
पुत्रेष्टि यज्ञ
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पृथ्वी पर हैहय वंशीय क्षत्रियराजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ गया, तब सभी लोग इन राजाओं द्वारा त्रस्त हो ग्ये। ब्राह्मण एवं साधु असुरक्षित हो गये। धर्म कर्म आदि के कामों में हैहय राजा व्यवधान उत्पन्न करने लगते थे। ऐसे समय में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि 'पुत्रेष्टि यज्ञ' सम्पन्न करते हैं, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं और उनकी पत्नी रेणुका से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त होते हैं। इन सभी में परशुराम उन हैहय वंशी राजाओं का अंत करते हैं।
आज भी इस झील में वास करती हैं भगवान परशुराम की मां
हिमाचल के जिला सिरमौर की ये रेणुका झील दुनिया भर में प्रसिद्घ है। राज्य की सबसे बड़ी झील होने के साथ साथ इसे काफी पवित्र भी माना जाता है। झील भगवान परशुराम की माता रेणुका का स्थाई निवास है जो सदियों से इसी झील में वास कर रही हैं।
रेणुका वही जगह है जहां भगवान विष्णु के छठे स्वरूप परशुराम का जन्म हुआ था। कहते हैं महर्षि जमदाग्नि और उनकी पत्नी भगवती रेणुका जी ने झील के साथ लगती चोटी तापे का टिब्बा में सदियों तक तपस्या की थी।
वर्षों बाद सहस्त्रबाहु नाम के एक शक्तिशाली शासक ने इस इलाके पर हमला कर दिया। कामधेनु गाय हासिल करने के लिए उसने महर्षि को भी पकड़ लिया और जोर जबरदस्ती करने लगा।
मगर महर्षि जमदाग्नि ने यह कहकर गाय देने से इंकार कर दिया कि यह गाय उन्हें भगवान विष्णु ने दी है। ऐसे में वह इस गाय को किसी और को देकर भगवान का भरोसा नहीं तोड़ सकते।
इससे क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु ने महर्षि की हत्या कर दी। उसी समय उनकी पत्नी रेणुका जी साथ लगते राम सरोवर में कूद गई और हमेशा के लिए जलसमाधि ले ली। उस समय परशुराम यहां नहीं थे।
बाद में परशुराम ने अपनी मां से विनती की कि वह झील से बाहर आ जाए। मगर मां रेणुका ने कहा कि वह अब हमेशा के लिए इस झील में वास करेंगी। वह परशुराम से मिलने साल में एक बार आएंगी।
कहते हैं कि इसके बाद से ही झील का नाम रेणुका झील पड़ा। उसी समय से इसकी आकृति भी महिला के आकार में ढल गई। पुराणों में भी इसका जिक्र किया गया है।
मान्यता है कि दशमी से एक दिन पहले मां परशुराम से मिलने आती है। इसके लिए यहां मेले में विशाल शोभा यात्रा भी निकाली जाती है। झील के पवित्र पानी में लाखों श्रद्घालु स्नान करते हैं। यहां पांच दिन का रेणुका मेला भी मनाया जाता है।
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